नारी की पीड़ा: नारी को समर्पित कविता, यदि मां ना होती तो ना होता यह संसार, ना होते रिश्ते नाते आज उन्हीं रिश्ते नातों ने किया शर्मसार

नारी की पीड़ा: नारी को समर्पित कविता, यदि मां ना होती तो ना होता यह संसार, ना होते रिश्ते नाते आज उन्हीं रिश्ते नातों ने  किया शर्मसार
नारी की पीड़ा: नारी को समर्पित कविता, यदि मां ना होती तो ना होता यह संसार, ना होते रिश्ते नाते आज उन्हीं रिश्ते नातों ने
 किया शर्मसार

नेहा मिश्रा (रायबरेली) की कलम से...
नारी की पीड़ा हां क्योंकि मैं एक नारी हूं मैंने जन्म दिया पाला पोसा उस बालक को जो आज बना व्यभिचारी है और निर्वस्त्र कर उसी मां को शर्मसार करने वाला पुरुष बना अधिकारी हां क्योंकि मैं नारी हूं
जिसने जन्म दिया बेटे को सृजा संसार आज उसी नारी की गूंज रही चारों ओर चीत्कार
हां,,,,,,,,,,
दर्द सहे अनगिनत मगर चेहरे पर थी मुस्कान सबको प्यार दुलार देकर किया राष्ट्र उत्थान परंतु आज उसी नारी के दर्द चीत्कार से मचा हाहाकार
हां,,,,,,,,,,
यदि मां ना होती तो ना होता यह संसार ना होते रिश्ते नाते आज उन्हीं रिश्ते नातों ने किया शर्मसार अपनी छाती फाड़ लहू से सींचा जिन बेटों को आज तन से खींच रहे वस्त्रों को तथा मेरे तन को नोच रहे समाज के पहरेदार
हां,,,,,,,,
शांत और निशब्द हूं क्योंकि नहीं छोड़ा वह आंचल जिसे ढककर  पालती थी वह लाल उसी लाल ने मां के आंचल को किया शर्मसार
हां,,,,,,,
नारी की पीड़ा और दर्द की यही कहानी आंखों में छलकते आंसू और दर्द  की ज्वाला है इस पापी संसार में कौन न्याय करने वाला
हां,,,,,,
पुरुष प्रधान समाज में दम तोड़ती नारी है और उसके जिस्म को नंगा नोच के खुश हुए व्यभिचारी हैं आज शासन सत्ता के लोभी देख रहे तमाशा है क्योंकि समाज नारी के खून का प्यासा है इसी दर्द में जीवन बिताती नारी है
हां,,,,,,
जागो समाज के ठेकेदारों न्याय करो उस नारी का जिसकी ममता और छांव में पलती दुनिया सारी
हां,,,,,,
व्यभिचार हिंसा  कुकर्म झेल जिंदा लाश बनी आज नारी है नीच कायर पुरुष का दंश सहती नारी है
हां,,,,, 
जिस दिन मां बहन पत्नी का सम्मान होगा वीरान हो जाएगी दुनिया नारी बिन जग श्मशान होगा हे समाज के ठेकेदारों मत भूलो तुम्हें भी जना है एक नारी ने उस मां के सम्मान के खातिर न्याय करो उस नारी का
हां,,,,,,
हे पुरुष जिस नारी ने तुझे यह सुंदर संसार दिखाया तूने उसका ऋण ऐसा चुकाया कि उसे भरे बाजार में निर्वस्त्र घुमाया नीच और कायर तूने उसे भरे बाजार निर्वस्त्र घुमाया नारी के दर्द को नहीं समझती यह पुरुष प्रधान देश की घृणित और नीच सोच को दर्शाती मणिपुर की घटना सारी है
हां,,,,,
जगो देश की वीर नारियों तुम्हें स्वयं सम्मान बचाना होगा और उन कायर और घृणित सोच वाले पुरुषों से स्वयं बदला चुकाना होगा
उनको कुचल कर दुनिया को दिखाना होगा कि जन्म देने के साथ नारी मृत्यु की भी अधिकारी है नारी तुझे अबला नहीं सबला बनना होगा क्योंकि यह दर्द नहीं तुम पर एक कर्ज है और तुम्हें यह कर्ज चुकाना होगा माथे पर लगे अबला के इस कलंक को मिटाना होगा  जिससे समाज फिर न दोहराये मणिपुर की यह घटना सारी है
हां,,,
मुंह पर दो धारी मुखौटा पहने करते समाज की ठेकेदार हैं और पैर धोकर कहते पूजनीय यह नारी है नारी के ही जिस्म को नोचते समाज के सत्ताधारी हैं
हां,,,,
नारी की ऐसी दुर्दशा देख दहल गई है दुनिया सारी है
हां,,,